Friday, April 3, 2009

गोबर नम्बर चार

आए दिन मैं सुनता हूँ की अंग्रेजी के हिन्दी में मिलजाने से हिन्दी धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है महानुभाव, हिन्दी को बचा कर आप क्या हासिल कर लेंगे? वैसे ये भी याद रहे की परिवर्तन जीवित होने की निशानी है. संस्कृत एक पूर्ण विकसित भाषा है, परन्तु रामायण की संस्कृत और महाभारत की संस्कृत मे अन्तर है, क्यों? ये सिर्फ़ इसलिए क्योंकि संस्कृत उस समय जीवित थी आज मृतप्राय अवस्था मैं उसे पूर्ण भाषा होने का दर्जा प्राप्त है संस्कृत इतनी परिषकृत की जिसमे कंप्यूटर सबसे बेहतर तरीके से काम कर सकता है! जिसे आप हिन्दी कहते है आपकी ५-६ पिडीयो पहले वही भाषा शैशव अवस्था मे थी, अवधी भोजपुरी, बुन्देली, पञ्जाबी, मैथिलि , ब्रिज और भी कई भाषाओ समेत सबकी मूल संस्कृत के मेलजोल से बनी हिन्दी. अब हिन्दी में अगर अंग्रेजी भाषा मिल रही है तो कई लोगो को नागवार है याद रहे जिसका विकास नही होता वो जीवित नही होता. हिन्दी जीवित हैं उसे संस्कृत की तरह मृत न बनाइये। भाषा का उपयोग न करना उसकी हत्या है, उसी प्रकार भाषा को भाषा पंडितो के लिए छोड़ देना भी उसकी हत्या है। हिन्दी में कई शब्द कई भाषाओ से लिए गए है अब उसमे कुछ शब्द अंग्रेजी के आ रहे है तो उन्हें स्वीकार करना चाहियें। अंग्रेजी तो ख़ुद ही भयभीत दिखाई दे रही है मोबाइल पर लिखी जाने वाली भाषा से।

खालिस अंग्रेजी भाषा की स्पेलिंग प्रतियोगिताओ में भारतीय अमेरिकी और भी कई अश्वेत बालक श्वेत बालको को मात दे रहे है। क्या आपने सोचा है क्यों? क्योंकि शुद्ध भाषा -२, व्याकरण का आलाप श्वेतो को अब अंग्रेजी से उसी तरह दूर भगा रहा है जिस तरह कभी संस्कृत को जनसामान्य से दूर कर सिर्फ़ आभिजात्य वर्ग तक ही सिमित कर दिया गया था। भाषा हमारी संस्कृति का जिवंत आइना है, वृक्ष जो घना और घना होता चला जाता है एक दिन परिवर्तन से इनकार कर देता है फिर वो बुढा हो कर गिर जाता है, उसकी जगह लेता है एक छोटा सा साधारण सा पौधा, और फिर वह भी विकसित हो कर घना होना शुरू कर देता है। अनंत काल से यही प्रकिया जारी है, और रहेगी, १६वि सदी में शेक्सपिअर के जमाने की अंग्रेजी और आज की अंग्रेजी में जमीं आंसमां का फर्क है, तो ये सिर्फ़ भाषा के जीवित और विकसित होने की निशानी है।
सच कडुआ होता है और हममे से कई लोगो को ये स्वाद पसंद नही है,मेरी पिछली रचना पर कई लोगो ने सहमती दिखाई थी, परन्तु इस बार शायद ही कोई मुझसे सहमत हो। आपके प्रतिसाद के लिए सादर धन्यवाद, यदि हास्य विनोद पढ़ना चाहे तो क्षमा चाहुगा परन्तु ये ब्लॉग आपके लिए नही है, यदि चाहे तो आप मेरा हास्य लेखन तत्व बोध (http://tatva-bodh.blogspot.com/)पर पढ़ सकते है।

1 comment:

  1. काफी अच्छे सवाल उठती हैं .....आपका लेखन अलग है
    यूँ ही निरंतर अच्छा लिखते रहें ....
    आपका और आपके ब्लॉग का स्वागत है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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