Tuesday, March 31, 2009

गोबर नम्बर 3

पर्यावरणविज्ञानिक पर्यावरण के कितने मित्र है, यह "अर्थ आवर" यानि "पृथ्वी घंटा" से साबित हो जाती है। दुनियो को अंधेरे में रखने से जितना भला हुआ पर्यावरण का उससे भी ज्यादा भला सिर्फ़ एक विमान की उड़ान रद्द होने से हो जाता है, जो बिजली एक बार बन गई क्या उसे फिर से कोयले में बदला जा सकता है? यदि नही तो अपने घर की बत्ती एक घंटे बंद कर आपने वातावरण का कोई हित नही किया! यदि आप हित करना ही चाहती/चाहते है तो प्रतिदिन बिजली की बचत कीजिये तभी विद्युत उत्पादन सयंत्र कम कोयला या पेट्रोल उपयोग करेंगे, वरना जो एक बार बिजली पैदा हो गई उसे संग्रह करना लगभग असंभव हैं।
शायद पर्यावरण वैज्ञानिक ये सोचते है की बिजली न उपयोग कर अगर मोमबत्तियों का प्रयोग किया जाय तो हम पृथ्वी को बचा लेंगे! अरे भैय्या मोमबत्ती से कोई धुआ नही निकलता क्या? वास्तव में अगर पर्यावरण पर कोई खतरा न हो तो ये सब अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। पृथ्वी घंटा मनाने के लिए अगर आप घर की बत्तियां बंद कर कार से बाहर केंडल लाइट डिनर पर जायेंगे तो हो चुका भला।
अभी मैंने पढा की गाय भैसों को मछली का तेल दिया जाए तो उनका पादना कम हो जायेगा इससे वातावरण का भला हो जायेगा। अरे वाहरे पर्यावरणविज्ञानं, शाकाहारियों को मांसाहारी बना देने से वातावरण सुधर जायेगा ये कह कर तो आपने अपनेआप ही सिध्ध कर दिया की आपकी बात सुनने वाले महामूर्ख है।
वास्तव में पश्चिमी विद्वान अनन्त काल से इसी भ्रम में है की दुनिया का सारा पोषण मांस में ही पाया जाता है। वे ये तो कहते है की इंसान की उत्पत्ति शाकाहारी वानरों से हुई है, परन्तु इसके साथ ये भी थोपने का प्रयत्न करते है की मनुष्य की बुध्धि का विकास तभी सम्भव हो सका जब उसने मांस भक्षण प्रारम्भ किया, क्योंकि इससे उसे ऐसे पोषक तत्त्व मिले जो शाक भाजियों से नही मिल सकते थे। में इन लोगो से ये पूछना चाहूँगा की आज भी शाक भाजी खाने वाले मांसाहारियों से अधिक सवस्थ रहते है, तो उस युग में जब उसने मांस खाना प्रारंभ किया अपने स्वास्थ्य की रक्षा कैसे कर पाया? और यदि वह अपने स्वाथ्य की रक्षा नही कर पाया तो विकासवाद के अनुसार वोह अपनी संतति को कैसे बचा पाया? मनुष्य का पाचन तंत्र शाकहरीयो के पाचन तंत्र से ही मेल खाता है, अतः मांसभक्षी मानव बिना चिकित्सा के अपनी स्वास्थ्य रक्षा नही कर सकता।
आप शाकाहारी जीवो को मांसभक्षी बना कर सात जन्मो में भी वातावरण का भला नही कर पायेंगे, अगर ऐसा किया गया तो इसके दूरगामी परिणामो को हमारी कई पुश्ते भोगेंगी । वातावरण का हित , उसके हिसाब से चल कर ही किया जा सकता है उसे अपने हिसाब से मोड़ का नही। पर्यावरण का असली शत्रु उपभोक्तावाद है, अपने हित के आगे, अपनी जिद के आगे , औरो को कुचल देने की मनोवृति है।

Saturday, March 28, 2009

गोबर नम्बर दो

है भारत भाग्य विधाता, उठा ले आडवानी और मनमोहन दोनों को ताकि हिंदुस्तान को एक नया और बेहतर नेत्रत्व मिल सके।
मनमोहन सिंह को सोनिया का गुलाम एवं भारत का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा गया है, किंतु यह तो अब तक की ही बात हुई। अगर आडवानी प्रधानमंत्री बने तो वे मनमोहन सिंह से भी अधिक कमजोर साबित होंगे! जरा सोचिये भैरो सिंह को राजस्थान के बाहर कितने लोग जानते है, माना वे उपराष्ट्पति रहे है, किंतु क्या उन्होंने उस पद पर रहते हुए एक भी ऐसा काम किया हैं, जिसके लिए उन्हें याद किया जा सके? क्या राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान शुन्य नही है? भैरो सिंह अगर राजस्थान को छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश से चुनाव लडे तो उनकी जमानत ही जप्त हो जायेगी। ऐसी स्थिति में भैरो जैसा ऐरा गैरा अगर आडवानी को आँखे दिखा सकता हैं, तो सोचिये की वे राजग का कुनबा कैसे सम्हालेंगे ? यहाँ मनमोहन सिंह को सिर्फ़ सोनिया कंट्रोल करती है, वहां उन्हें कंट्रोल करने के लिए सैकडो छुटभैये तैयार होंगे! नविन पटनायक ने ये साबित कर ही दिया है की किस तरह से नाव डुबोई जाती है, अरुण जेटली बीजेपी की अगली पीडी के नेता है, परन्तु ग्रृहयुध्ध तब कर रहे हैं जब समरभूमि चीख पुकार कर रही है शिवसेना को सिर्फ़ महाराष्ट से मतलब है। कुलमिलाकर कुनबा सम्हालने के लिए जैसी कुशलता कुलपति से अपेक्षित की जाती है , वैसी आडवानी मे दूर दूर तक दिखाई नही देती! कांग्रेस देश का दुर्भाग्य है परन्तु उसे सहना हमारी मज़बूरी है, तीसरा मोर्चा मुझे वैकल्पिक पाकिस्तान दिखाई देता है, क्योंकि ये पाकिस्तान की ही तरह ऋणात्मक विचारधारा से पीड़ित है। मायावती का अवसरवाद, कम्युनिस्टो का कमीनापन किसी भी स्थिति में अयोग्य ही ठहराया जायेगा।

Tuesday, March 24, 2009

गोबर नम्बर एक

दीपा मेहता एक बार फिर हाजिर है एक और तत्त्व को अपमानित करने के लिए। इस दुष्ट के लिए तो मेरे पास शब्द नही है। पृथ्वी, जल, अग्नि ये पञ्च महाभूत सिर्फ़ पवित्र ही नही बल्कि पूजनीय है। कहने को तो हिदुत्व के नाम पर लड़ने को शिवसेना , बजरंग दल लाठियाँ भांजते रहते है। परन्तु ये सब छलावा सिर्फ़ वोट पाने के लिए है। पृथ्वी तत्व जिसे हम माँ कहते हैं, इस पापीं के हाथो दुबारा अपमानित होने जा रहा है। किंतु क्या इसके लिए कोई इसे अदालत तक घसीटेंगा? आख़िर किसने दिया इसे एक एक कर पंच्तात्वो को अपमानित करने का अधिकार। स्लमडाग बनाने वाले का भारत से कोई सम्बन्ध नही था। और इस कैनेडियन के लिए भी भारत माता या हिंदू धर्मं का कोई अर्थ नही है। इन्हे ये अच्छी तरह से पता है की भारत की बुराई विदेशियों को बहुत रास आती है। बार बार सर्वेक्षणों में हिंदुस्तान को सबसे प्रसन्न राष्ट्रों में गिना जाता है, यदि हिंदुस्तान में महिलाओ के लिए सिर्फ़ अपमान का ही व्यवहार है, तो हिन्दुस्तानी परिवार टिके कैसे हैं, आधुनिकता के बिच भी हमारे परिवारिक मूल्यों में कोई कमी नही आई है। आपकी फिल्मो में जो नारी शोषण दिखाया गया है, उससे भी ज्यादा शोषण विदेशो में होता है। फ्रित्सल का उदाहरण सबके सामने है, इससे कोई पूछे की क्या आप बनायेंगी ऐसे घिनोने पिता पर फिल्म? वास्तव में आप ऐसा नही करेंगी क्योंकि अपनी जन्मभूमि और उसकी संस्कृति का बलात्कार करने वाली होने के बाद आपसे तो फ्रित्सल के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ सहानुभूति ही अपेक्षित है।