Saturday, March 28, 2009

गोबर नम्बर दो

है भारत भाग्य विधाता, उठा ले आडवानी और मनमोहन दोनों को ताकि हिंदुस्तान को एक नया और बेहतर नेत्रत्व मिल सके।
मनमोहन सिंह को सोनिया का गुलाम एवं भारत का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा गया है, किंतु यह तो अब तक की ही बात हुई। अगर आडवानी प्रधानमंत्री बने तो वे मनमोहन सिंह से भी अधिक कमजोर साबित होंगे! जरा सोचिये भैरो सिंह को राजस्थान के बाहर कितने लोग जानते है, माना वे उपराष्ट्पति रहे है, किंतु क्या उन्होंने उस पद पर रहते हुए एक भी ऐसा काम किया हैं, जिसके लिए उन्हें याद किया जा सके? क्या राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान शुन्य नही है? भैरो सिंह अगर राजस्थान को छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश से चुनाव लडे तो उनकी जमानत ही जप्त हो जायेगी। ऐसी स्थिति में भैरो जैसा ऐरा गैरा अगर आडवानी को आँखे दिखा सकता हैं, तो सोचिये की वे राजग का कुनबा कैसे सम्हालेंगे ? यहाँ मनमोहन सिंह को सिर्फ़ सोनिया कंट्रोल करती है, वहां उन्हें कंट्रोल करने के लिए सैकडो छुटभैये तैयार होंगे! नविन पटनायक ने ये साबित कर ही दिया है की किस तरह से नाव डुबोई जाती है, अरुण जेटली बीजेपी की अगली पीडी के नेता है, परन्तु ग्रृहयुध्ध तब कर रहे हैं जब समरभूमि चीख पुकार कर रही है शिवसेना को सिर्फ़ महाराष्ट से मतलब है। कुलमिलाकर कुनबा सम्हालने के लिए जैसी कुशलता कुलपति से अपेक्षित की जाती है , वैसी आडवानी मे दूर दूर तक दिखाई नही देती! कांग्रेस देश का दुर्भाग्य है परन्तु उसे सहना हमारी मज़बूरी है, तीसरा मोर्चा मुझे वैकल्पिक पाकिस्तान दिखाई देता है, क्योंकि ये पाकिस्तान की ही तरह ऋणात्मक विचारधारा से पीड़ित है। मायावती का अवसरवाद, कम्युनिस्टो का कमीनापन किसी भी स्थिति में अयोग्य ही ठहराया जायेगा।

4 comments:

  1. बहुत ही बेबाक विष्लेशण....

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  2. ye biju patnayak kaun hain .....kripya batane ka kasht karenge
    Navnit Nirav

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  3. वैसे मेरा राजनैतिक ज्ञान शून्य है, लेकिन आपका विश्लेषण पढ़कर चक्षु खुल गये हैं। निष्कर्ष यह निकला कि "कोई उम्मीद नहीं"!

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